2. जन्म-तिथि की गलती
-- महेश कुमर वर्मा
Mahesh Kumar Verma
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महेश कुमार वर्मा के जीवन से जुड़े कितने घटनाओं के सच्चाई पर से अभी तक पर्दा नहीं हट पाया है और कई घटनाओं का रहस्य अब तक रहस्य ही है। लोगों के सामने सच्चाई लाने के उद्देश्य से ही यह ब्लॉग बनाया गया है, अतः यहाँ प्रकाशित किसी भी सच्ची बातों पर लोगों को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
ऐसा सभी के साथ होता है। मेरे साथ भी हुआ है। मेरी भी इसी तरह दो जन्मतिथियाँ हैं। वस्तुतः पहले अंग्रेजी कलेंडर की जन्मतिथि को इतना महत्व दिया ही नहीं जाता था। जन्म के चार-पाँच वर्ष बाद जब बच्चे को स्कूल में दाखिल कराना होता था तो जन्म तारीख ध्यान ही नहीं रहती थी अंदाजे से लिखा देते थे।
ReplyDeleteऔर टिप्पणी पर से वर्ड वेरीफिकेशन हटाओ, वर्ना कौन टिप्पणी करने आएगा?
माता पिता जी के बारे ऎसे शव्द( संकीर्ण मानसिकता ) शोभा नही देते, फ़िर यह जन्म दिन की हेरा फ़ेरी हम सब के संग हुयी हे, इस लिये हर जगह मां बाप को दोष नही देना चाहिये उन्होने हमे पाल पोष कर बडा भी तो किया हे, हमे आज इस लायक बनाया हे कि हम जो भी हे उसी की देन हे, बाकी दिनेश जी की बात से भी सहमत हे. धन्यवाद
ReplyDeleteजैसा कि दिनेश जी ने कहा कि जन्म-तिथि याद नहीं रहने के कारण गलत जन्म-तिथि लिखवाया जाता है. यह अलग बात है पर मेरे यहाँ तो जानबूझकर गलत लिखवाया जाता है. मेरे छोटे भाई प्रमोद का नामांकन कराने मैं खुद स्कूल गया था. फॉर्म पर पिताजी हस्ताक्षर करके मेरे साथ भेज दिए थे. पर पिताजी के निर्देश पर उसका भी जन्म-तिथि गलत ही लिखा गया. जबकि सही जन्म-तिथि की जानकारी थी. मेरे यहाँ ही नहीं मेरे समाज में ऐसा ही होता है और विद्यालय में गलत जन्म-तिथि लिखवाया जाता है. किसी को जन्म-तिथि कहिये तो वे पूछेंगे कि original या certificate का?
ReplyDeleteजहाँ तक रही भाटिया जी द्वारा माता-पिता के प्रति प्रयोग किये गए संकीर्ण मानसिकता शब्द पर आपत्ति की बात तो यहाँ मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मैं अपने ब्लॉग के ऊपर में यह बात स्पष्ट कर दिया हूँ कि यह ब्लॉग किसी को बदनाम या अपमान करने के लिए नहीं है बल्कि लोगों के सामने सच्चाई व वास्तविकता सामने लाने के लिए है. जो गलत कार्य समाज में होती है उसपर यदि आप चर्चा कर सकते है तो फिर यदि वही कार्य आपके अपने ही घर में होता है तो उसे छिपाने की क्या जरुरत? मैं सत्य-धर्म पर चलने वाला व्यक्ति हूँ और मुझे सत्य बोलने में कोई डर नहीं है और न तो सत्य बोलने में कोई हर्ज है. मेरे माता-पिता या किसी के भी जो कार्य अच्छा है उसका मैं प्रसंशा भी करता हूँ और जो बुरा है उसका निंदा भी करता हूँ. इसी ब्लॉग के पूर्व के पोस्ट आत्मकथा का प्रारंभ : दूनियाँ को सलाम में आप देखें जिसमें मैं लिखा हूँ "मेरे वो माँ-बाप घन्य हैं जिसने मुझे जन्म दिया व मुझमें सच्चाई व ईमानदारिता का संस्कार भरा. पर मेरे वो माँ-बाप निंदा के पात्र हैं जिसने मुझे सच्चाई से हटाना चाहा व सच्चाई का साथ न देकर मुझे मौत के सन्निकट किया व मेरे प्रगति में बाधा डाला. .................. " अपने अन्य ब्लॉग http://popularindia.blogspot.com में मैं समाज की कुव्यवस्था पर लिखा तो कोई हर्ज नहीं तो अपनी आत्मकथा में यदि अपने घर के कुव्यवस्था पर लिखा तो क्या हर्ज है? यदि आत्मकथा में ऐसा नहीं लिख सकता हूँ तो फिर आत्मकथा का क्या मतलब रह जाता है? यदि आत्मा कथा में घर या अपने साथ किसी के द्वारा किये गए गलती व उसका कारण न लिखूं तब तो वह आत्मकथा नहीं बल्कि घर व लोगों के साथ प्रेमकथा बनकर ही रह जायेगी.
आपका
महेश
पहले जन्म तिथि को लोग सही याद भी नहीं रखते थे , हाँ जब स्कूल में दाखिले का समय होता तब मास्टर जी को बता दिया जाता कि बच्चे उम्र चार ,पांच साल है और मास्टर जी उन सालों की गणना कर उतने साल पीछे की कोई तारीख लिख दिया करते थे |
ReplyDeleteहमारे गांव में भी सभी की जन्म तिथि ऐसे ही लिखी जाती थी स्कूल के अनुसार सभी बच्चों का जन्म महिना जुलाई अगस्त ही होता था |