1. दूनियाँ को सलाम
जिन लोगों के साथ जैसी घटी है वे उस ढंग से मुझे जानते हैं. लोगों के नजर में मैं जैसा भी रहूँ पर अपनी सफलता के लिए मैं इसी दूनियाँ, समाज व परिवेश को धन्यवाद देता हूँ व अपनी असफलता के लिए भी मैं इसी दूनियाँ, समाज व परिवेश को कोसता हूँ. मेरे पास जो कुछ भी है वह इसी दूनियाँ की देन है. कहीं पर मैं प्रतिष्ठा का पात्र हूँ तो कहीं पर मैं लोगों के आँखों का काँटा हूँ; किसी के नजर में मैं अच्छा हूँ तो किसी के नजर में बुरा हूँ; कोई मुझे जिन्दा देखना चाहते हैं तो कोई इस दूनियाँ से मेरा नामों-निशान मिटा देना चाहते हैं ................. जो कुछ भी है वह सारी इसी दूनियाँ की देन है. मेरे जीवन में कई तरह की घटनाएं घटी हैं. भिन्न-भिन्न प्रकार की परिस्थिति व माहौल से मुझे सामना करना पड़ा है. मेरे जीवन की कई बात व घटनाएं लोगों के सामने आज भी रहस्य बना हुआ है .................. खैर उस दूनियाँ को सलाम जिसने मुझे शरण दिया. दूनियाँ के वे लोग धन्यवाद के पात्र हैं जिसने मुझे शरण व आश्रय दिया व मेरे सुख-दुःख में मेरा साथ दिया. दूनियाँ के वे लोग भी याद करने के पात्र हैं जिसने मेरे प्रगति के पथ में बाधा डाला व मेरी मौत चाहा व मेरी मौत के लिए तरह-तरह के प्रयोजन किया. मेरे वो माँ-बाप घन्य हैं जिसने मुझे जन्म दिया व मुझमें सच्चाई व ईमानदारिता का संस्कार भरा. पर मेरे वो माँ-बाप निंदा के पात्र हैं जिसने मुझे सच्चाई से हटाना चाहा व सच्चाई का साथ न देकर मुझे मौत के सन्निकट किया व मेरे प्रगति में बाधा डाला. .................. कुल मिलाकर दूनियाँ के वे सभी लोग यादगार के पात्र हैं जिनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मुझसे या मुझसे जुड़े किसी भी घटना से संबंध हो. आज दिनांक 19.01.2011 दिन बुधवार को अपने 33वीं वर्षगाँठ पर मैं अपने आत्मकथा लिखने का प्रारंभ करते हुए दूनियाँ वाले को याद करते हुए यही गुजारिश करता हूँ कि वैसी सजा तुम किसी को मत देना जैसा तुमने मुझे दिया व ईश्वर से कामना करता हूँ कि सबों को सद्बुद्धि दो.
-- महेश कुमर वर्मा
Mahesh kumar Verma
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जन्मदिन पर शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteआप की व्यथा को समझना इतना आसान नहीं है। फिर भी आपने अपनी आत्मकथा लिखने का साहस किया, यह बड़ी बात है। बस लिखते रहिए।