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Tuesday, January 25, 2011

कोई भी संतान या औलाद नाजायज नहीं हो सकता है

4. कोई भी संतान या औलाद नाजायज नहीं हो सकता है

अब कानून के नजर से हम सभी भाई-बहन अपने माता-पिता के जायज औलाद हैं नाजायज यह अलग बात है पर मेरी नजर में कोई संतान नाजायज नहीं हो सकता है.  किसी माता-पिता की शादी या माँ का गर्भधारण जायज या नाजायज हो सकता है पर संतान का जन्म होने के बाद वह नाजायज नहीं हो सकता और उस संतान को अपने माता-पिता के संतान होने का पूरा लाभ मिलना चाहिए. 
मैं ऊपर अपने सभी भाई-बहन के बारे में कानून के नजर में जायज या नाजायज औलाद की बात इसलिए किया क्योंकि मेरे पिता यानी बड़गांव, सहरसा के कृष्णदेव लाल दास के पुत्र सत्येन्द्र नाथ दास ने मेरी माँ यानी मंजु देवी से शादी करने से पहले जगतपुर, सुपौल के तारा देवी से शादी किये थे.  पिताजी सत्येन्द्र नाथ दास नौकरी करते थे जिस कारण वे बाहर रहते थे.  उनकी पहली पत्नी तारा देवी भी नौकरी करना चाहती थी. पर पिताजी को ये पसंद नहीं था कि वह नौकरी करे और पिताजी उन्हें नौकरी करने नहीं दिए जिसका नतीजा यह हुआ कि एक बार जब उनके पत्नी तारा देवी अपने मायके में थी और पिताजी नौकरी पर बाहर थे और पिताजी जब आए व तारा देवी के मायके उनसे मिलने गए तो वह पिताजी से मिलने से इंकार कर दी और पिताजी उनसे नहीं मिल सके.  बस इसके बाद ही दोनों का संबंध खत्म हो गया.  तारा देवी शिक्षिका का कार्य करने लगी.  इनदोनों से कोई संतान नहीं हुआ था.
तारा देवी द्वारा छोड़े जाने के बाद पिताजी सत्येन्द्र नाथ दास की दूसरी शादी अगुवानपुर, सहरसा के उग्र नारायण लाल दास के पुत्री मंजु देवी से हुयी.  पूर्व वर्णित सभी छः संतान यानी हम सभी छः भाई-बहन इन्हीं दम्पति यानी सत्येन्द्र नाथ दास व मंजु देवी के संतान हैं.  जानकारी के अनुसार पिताजी सत्येन्द्र नाथ दास ने माँ मंजु देवी शादी करने से पहले पूर्व के पत्नी तारा देवी से कानूनन तलाक नहीं लिया था अतः कानूनन इस दूसरी शादी को अवैध कहा जा सकता है.  वैसे यह अलग बहस का विषय है पर इसी कारण ही मैं जायज या नाजायज औलाद की बात उठाया.  पर मेरे नजर में जैसा कि मैं ऊपर स्पष्ट कर चूका हूँ कि कोई भी संतान या औलाद नाजायज नहीं हो सकता है चाहे माँ-बाप की शादी या गर्भधारण जायज हो या नाजायज.

-- महेश कुमार वर्मा
Mahesh Kumar Verma
Mobile: 00919955239846

Monday, January 24, 2011

माता-पिता के छः संतान

3. माता-पिता के छः संतान

कहा जाता है कि मेरे जन्म से पहले भगवान से बहुत ही मनौती / मन्नतें की गयी थी.   वह इसलिए क्योंकि मेरे जन्म से पहले मेरी माँ ने एक लड़की को जन्म दी थी और वह मात्र 21  दिन में ही शरीर छोड़ दी थी.  उसका नाम सोनी रखा गया था.  उसके गुजर जाने के बाद मेरे जन्म के समय सही सलामती के लिए भगवान से  बहुत ही मनौती / मन्नतें की गयी थी.  वैसे मुझसे बड़े दो भाई व एक बहन थे बाद में मुझसे छोटे एक भाई व एक बहन भी हुयी.  प्राप्त जानकारी के अनुसार ऊपर वर्णित सोनी के अलावा डॉक्टर के लापरवाही से मेरी माँ के गर्भ का एक और भ्रूण नष्ट हुआ था.  इस प्रकार इन दोनों के अलावा मेरे माता मंजु देवी व पिता सत्येन्द्र नाथ दास के 6 (छः) संतानें जीवित बचे जिनका क्रम से नाम इस प्रकार है --
  1. किशोर कुमार वर्मा -- लड़का
  2. ज्योत्स्ना कुमारी -- लड़की
  3. दिनेश कुमार वर्मा -- लड़का
  4. महेश कुमार वर्मा -- लड़का
  5. रीना कुमारी -- लड़की
  6. प्रमोद कुमार वर्मा -- लड़का

सत्येन्द्र नाथ दास व मंजु देवी बच्चे के साथ


-- महेश कुमार वर्मा
Mahesh Kumar Verma
Mobile: 00919955239846

Thursday, January 20, 2011

जन्म-तिथि की गलती

2. जन्म-तिथि की गलती

विद्यालय के प्रमाण-पत्र  में मेरा जन्म-तिथि 19.01.1978 है पर कहा जाता है कि मेरा जन्म 21.03.1977 को हुआ था.  जैसा मेरे पिताजी ने मुझे जो बताया था उस अनुसार मेरा जन्म 21 मार्च 1977 दिन सोमवार को भारतीय समयानुसार रात्रि 10 बजकर 30 मिनट पर बिहार (अब झारखण्ड) राज्य के सिंहभूम (अब पूर्वी सिंहभूम) जिला के धालभूमगढ़ अनुमंडल के बराहडीह गाँव में हुआ था.  बराहडीह गाँव में मेरा जन्म कहाँ हुआ था या वहाँ नौकरी के दौरान पिताजी सपरिवार कहाँ रहते थे यह मुझे नहीं मालूम  है.  वैसे बराहडीह का मुझे कुछ भी याद नहीं है.  बाद में पिताजी सपरिवार सिंहभूम जिला के घाटशिला में रहते थे वहाँ का कुछ-कुछ मुझे याद है. ........... तो मेरा सही जन्म-तिथि 21.03.1977 है पर मेरे माता-पिता ने विद्यालय में जन्म-तिथि 19.01.1978 दर्ज करवाया.  उनके इस गलती को मुझे जीवन भर ढोना है.  विद्यालय के प्रमाण-पत्र के अनुसार हरेक जगह मैं जन्म-तिथि 19.01.1978 ही लिखता हूँ अतः मैं अपने जन्म-तिथि के रूप में इसी तिथि को महत्त्व देता हूँ.  प्रश्न है कि मेरे माता-पिता ने विद्यालय में जन्म-तिथि गलत क्यों दर्ज करवाया?  इसका एक ही कारण है और वह है उनके संकीर्ण मानसिकता.  उनलोगों का मानना है व अभी भी कई लोगों का ऐसा मानना है कि सही उम्र छिपाकर रखना चाहिए व विद्यालय में उम्र कम लिखवाना चाहिए.  अब लोगों की ऐसी सोच क्यों है यह तो अलग बहस का विषय है.  पर यहाँ तो मैं यह कहना चाहूँगा कि मेरे माँ-बाप के इस गलती को मुझे जीवन भर साथ ढोना  पड़ेगा व सभी जगह गलत जन्म-तिथि ही प्रस्तुत करना पड़ेगा.  वैसे मैं यह मानता हूँ कि ज्योतिषीय अध्ययन में सही जन्म-तिथि की जरुरत होती है अतः उन स्थानों पर मैं सही जन्म-तिथि 21.03.1977  ही देता हूँ.  अन्यथा व्यावहारिक में सभी जगह जन्म-तिथि 19.01.1978  देने के कारण अपना जन्म-तिथि 19.01.1978  ही मानता हूँ.


-- महेश कुमर वर्मा
Mahesh Kumar Verma
Mobile: 00919955239846

Wednesday, January 19, 2011

आत्मकथा का प्रारंभ : दूनियाँ को सलाम

1. दूनियाँ को सलाम

जिन लोगों के साथ जैसी घटी है वे उस ढंग से मुझे जानते हैं.  लोगों के नजर में मैं जैसा भी रहूँ पर अपनी सफलता के लिए मैं इसी दूनियाँ, समाज व परिवेश को धन्यवाद देता हूँ व अपनी असफलता के लिए भी मैं इसी दूनियाँ, समाज व परिवेश को कोसता हूँ.  मेरे पास जो कुछ भी है वह इसी दूनियाँ की देन है.  कहीं पर मैं प्रतिष्ठा का पात्र हूँ तो कहीं पर मैं लोगों के आँखों का काँटा हूँ; किसी के नजर में मैं अच्छा हूँ तो किसी के नजर में बुरा हूँ; कोई मुझे जिन्दा देखना चाहते हैं तो कोई इस दूनियाँ से मेरा नामों-निशान मिटा देना चाहते हैं ................. जो कुछ भी है वह सारी इसी दूनियाँ की देन है.  मेरे जीवन में कई तरह की घटनाएं घटी हैं.  भिन्न-भिन्न प्रकार की परिस्थिति व माहौल से मुझे सामना करना पड़ा है.  मेरे जीवन की कई बात व घटनाएं लोगों के सामने आज भी रहस्य बना हुआ है ..................  खैर उस दूनियाँ को सलाम जिसने मुझे शरण दिया.  दूनियाँ के वे लोग धन्यवाद के पात्र हैं जिसने मुझे शरण व आश्रय दिया व मेरे सुख-दुःख में मेरा साथ दिया.  दूनियाँ के वे लोग भी याद करने के पात्र हैं जिसने मेरे प्रगति के पथ में बाधा डाला व मेरी मौत चाहा व मेरी मौत के लिए तरह-तरह के प्रयोजन किया.  मेरे वो माँ-बाप घन्य हैं जिसने मुझे जन्म दिया व मुझमें सच्चाई व ईमानदारिता का संस्कार भरा.  पर मेरे वो माँ-बाप निंदा के पात्र हैं जिसने मुझे सच्चाई से हटाना चाहा व सच्चाई का साथ न देकर मुझे मौत के सन्निकट किया व मेरे प्रगति में बाधा डाला. .................. कुल मिलाकर दूनियाँ के वे सभी लोग यादगार के पात्र हैं जिनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मुझसे या मुझसे जुड़े किसी भी घटना से संबंध हो.  आज दिनांक 19.01.2011 दिन बुधवार को अपने 33वीं वर्षगाँठ पर मैं अपने आत्मकथा लिखने का प्रारंभ करते हुए दूनियाँ वाले को याद करते हुए यही गुजारिश करता हूँ कि वैसी सजा तुम किसी को मत देना जैसा तुमने मुझे दिया व ईश्वर से कामना करता हूँ कि सबों को सद्बुद्धि दो.


-- महेश कुमर वर्मा
Mahesh kumar Verma
Mobile: 00919955239846